डा0 अनिल चड्डा की और भी है रचनाएँ :
उन्होने चुपके से ज़हर पिला दिया
गरज़ पड़ी न थी कि फिर से बुला लिया,
इस्तेमाल किया और भुला दिया ।
दवा-दारू से काम चला नहीं जब,
उन्होने चुपके से ज़हर पिला दिया ।
वक्त आया था जिंदगी जीने का जब,
खुदा ने चैन की नींद सुला दिया ।
हमारी हस्ती ही क्या है खुल के हँस लें ,
उन्होने इतना हँसाया कि रुला दिया ।
उन पर कुर्बानी से ये उम्मीद न थी,
प्यार का उसने ये क्या सिला दिया ।
समाप्त
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नारायण राव
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